गुटनिरपेक्ष आंदोलन को तीसरी दुनिया के देशों ने 'तीसरे विकल्प' के रूप में समझा। जब शीतयुद्ध अपने शिखर पर था तब इस विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में कैसे मदद पहुँचाई ?
गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के नव-स्वतंत्र देशों को दोनों महाशक्तियों के गुटों से अलग रहने का विकल्प दिया। शीतयुद्ध के दौरान इस विकल्प से तीसरी दुनिया के देशों को विकास करने में काफी सहायता प्राप्त हुई। तीसरी दुनिया के अधिकांश देश अल्प विकसित थे। इन देशों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक विकास व गरीबी का अन्त करने की थी। वास्तविक स्वतंत्रता के लिए विकास जरूरी था क्योंकि इन देशों को धनी देशों पर निर्भर करना पड़ताथा जिनमें उप-निवेशवादी देश भी सम्मिलित थे। अतःऐसी परिस्थितियों में नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्थाकी धारणा का जन्म हुआ। जिसमें अल्प विकसित देशोंको अपने उन प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त होगाजिसका दोहन पश्चिम के विकसित देश करते धीरे गुट निरपेक्षता की प्रकृति में परिवर्तन आया औरआर्थिक विषयों को अधिक महत्व दिया जाने लगा। इसके परिणामस्वरूप गुट निरपेक्ष आंदोलन एक आर्थिक दबाव समूह बन गया। तीसरी दुनिया के राष्ट्रों को दोनोंमहाशक्तियों से भी समय-समय पर मदद मिलती रही।
0 Comments